
Antarctica Melting Glaciers: अंटार्कटिका में बर्फ पिघलने की रफ्तार लगातार तेज हो रही है। अब तक यह सिर्फ समुद्री जलस्तर बढ़ने की वजह मानी जाती थी, लेकिन एक नई रिसर्च ने वैज्ञानिकों की चिंता और बढ़ा दी है। ताजा अध्ययन के मुताबिक अंटार्कटिका की बर्फ के नीचे छिपे 100 से ज्यादा ज्वालामुखी अब विस्फोट की कगार पर हो सकते हैं।
ग्लोबल वॉर्मिंग बना खतरा
ग्लोबल वॉर्मिंग के कारण अंटार्कटिका के ग्लेशियर तेजी से सिकुड़ रहे हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि यह बर्फीला महाद्वीप एक प्राकृतिक टाइम बम की तरह बनता जा रहा है? इस महाद्वीप में करीब 100 ऐसे ज्वालामुखी हैं जिन पर अब तक ज्यादा शोध नहीं हुआ है। इनमें से कई सतह के ऊपर हैं, तो कुछ बर्फ की मोटी परतों के नीचे गहराई में दबे हुए हैं।
कम होता दबाव, बढ़ता विस्फोट का खतरा
जब बर्फ की चादर पिघलती है, तो नीचे की चट्टानों पर पड़ने वाला दबाव घटने लगता है। इसी बदलाव के कारण नीचे मौजूद मैग्मा का विस्तार शुरू हो सकता है। वैज्ञानिकों के मुताबिक जैसे-जैसे बर्फ हटती जाती है, वैसे-वैसे ज्वालामुखी विस्फोट की संभावनाएं भी बढ़ती जाती हैं।
सिमुलेशन से मिले संकेत
शोधकर्ताओं ने कंप्यूटर सिमुलेशन के जरिये यह पता लगाने की कोशिश की कि पिघलती बर्फ का ज्वालामुखियों पर क्या असर हो सकता है। नतीजे बताते हैं कि जैसे-जैसे बर्फ कम होती जाएगी, अंटार्कटिका में ज्वालामुखी गतिविधियों की संख्या बढ़ सकती है।
मैग्मा गैसें भी बन रही हैं खतरा
मैग्मा चैंबरों में बंद वाष्पशील गैसें सामान्य तौर पर वहां स्थिर रहती हैं। लेकिन जब सतही दबाव घटता है, तो ये गैसें तेजी से निकलने लगती हैं। इससे मैग्मा पर दबाव और बढ़ जाता है, जो भविष्य में किसी बड़े विस्फोट का कारण बन सकता है। हालांकि विशेषज्ञों का कहना है कि यह प्रक्रिया धीमी होती है और पूरी तरह विकसित होने में सैकड़ों साल भी लग सकते हैं।
समुद्र स्तर पर असर संभव
हालांकि इन ज्वालामुखियों के फटने से तुरंत सतह पर कोई बड़ा बदलाव नहीं दिखाई देगा, लेकिन इससे Ice Sheets और भी कमजोर हो सकती हैं। इसका नतीजा ये होगा कि समुद्र का जलस्तर और तेजी से बढ़ेगा, जिससे तटीय इलाकों पर असर पड़ सकता है।