
उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा में जिला उपभोक्ता आयोग ने एक बड़ा फैसला सुनाते हुए एक बीमा कंपनी को इलाज के खर्च के तौर पर पूरी राशि ब्याज सहित लौटाने का निर्देश दिया है। यह फैसला उपभोक्ता अधिकारों की सुरक्षा के लिहाज से अहम माना जा रहा है।
क्या है पूरा मामला?
नोएडा सेक्टर-33 के निवासी ताराचंद्रा को 26 अप्रैल 2021 को निमोनिया हो गया था। हालत बिगड़ने पर उन्हें तुरंत एक निजी अस्पताल में भर्ती करवाया गया। उनके पास पहले से एक स्वास्थ्य बीमा पॉलिसी थी, जो 11 जुलाई 2020 से 10 जुलाई 2021 तक वैध थी। इस पॉलिसी के लिए उन्होंने करीब 14,803 रुपये का प्रीमियम अदा किया था।
बीमा कंपनी ने क्यों ठुकराया क्लेम?
इलाज पूरा होने के बाद अस्पताल ने बीमा कंपनी को 2 जून 2021 को 4,64,143 रुपये का क्लेम भेजा। लेकिन 17 अक्टूबर 2021 को बीमा कंपनी ने इस क्लेम को यह कहते हुए अस्वीकार कर दिया कि इलाज से जुड़े दस्तावेज “जाली और मनगढ़ंत” हैं। साथ ही उन्होंने पॉलिसी को धोखाधड़ी का मामला बताते हुए रद्द कर दिया।
उपभोक्ता आयोग का कड़ा फैसला
ताराचंद्रा ने अपने अधिकारों की रक्षा के लिए जिला उपभोक्ता आयोग का दरवाजा खटखटाया। आयोग के अध्यक्ष अनिल कुमार पुंडीर और सदस्य अंजु शर्मा ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद पाया कि:
बीमा कंपनी अपने आरोप साबित नहीं कर सकी।
जाली दस्तावेज़ होने का कोई ठोस सबूत पेश नहीं किया गया।
कंपनी की ओर से सेवा में भारी लापरवाही बरती गई।
उपभोक्ता को मानसिक व आर्थिक नुकसान हुआ।
क्या आदेश दिया गया?
आयोग ने बीमा कंपनी को निर्देश दिया है कि वह:
4,64,143 रुपये की पूरी राशि
6% वार्षिक ब्याज के साथ
शिकायत दर्ज होने की तारीख से भुगतान की तारीख तक
30 दिनों के भीतर ताराचंद्रा को लौटाए।
उपभोक्ताओं के लिए क्या संदेश?
यह फैसला बीमा कंपनियों के लिए स्पष्ट संदेश है कि वे:
उपभोक्ताओं से किए गए वायदों को पूरा करें।
बिना ठोस आधार के क्लेम न ठुकराएं।
सेवा में कमी न बरतें।
वहीं, आम नागरिकों के लिए भी यह मामला एक जागरूकता की मिसाल है कि अपने कानूनी अधिकारों को पहचानना और न्याय की मांग करना जरूरी है।