
भारत के उत्तर में स्थित लेह-लद्दाख और कश्मीर को आपस में जोड़ने वाला जोजिला टनल प्रोजेक्ट देश के सबसे महत्त्वाकांक्षी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स में से एक बन चुका है। समुद्र तल से 11,578 फीट की ऊंचाई पर बनाई जा रही यह सुरंग न केवल देश की सबसे लंबी रोड टनल होगी, बल्कि यह एशिया की सबसे लंबी बाई-डायरेक्शनल सुरंग भी होगी।
इस सुरंग का निर्माण लगातार प्रगति पर है, और इसमें एक बड़ी भूमिका निभा रही है केंद्र सरकार की महारत्न कंपनी — स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (SAIL), जिसने अब तक इस प्रोजेक्ट को 31,000 टन से अधिक स्टील की आपूर्ति कर दी है।
जोजिला टनल का महत्व: सिर्फ कनेक्टिविटी नहीं, सामरिक ताकत भी
जोजिला पास कश्मीर घाटी को लद्दाख से जोड़ने वाला एक प्रमुख पर्वतीय मार्ग है, जो श्रीनगर से लगभग 100 किलोमीटर और सोनमर्ग से मात्र 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सर्दियों में भारी बर्फबारी के चलते यह पास करीब 5-6 महीने पूरी तरह से बंद हो जाता है, जिससे लेह और लद्दाख का संपर्क भारत के बाकी हिस्सों से कट जाता है।
ऐसे में ज़ोजिला टनल का निर्माण इस क्षेत्र के लिए एक वरदान साबित होगा। इससे न केवल आम लोगों की आवाजाही पूरे साल संभव हो पाएगी, बल्कि सेना को भी सामरिक दृष्टि से बड़ी सुविधा मिलेगी। टैंक, हथियार, रसद और अन्य सामग्री अब किसी मौसम बाधा के बिना तेज़ी से भेजी जा सकेगी।
कितनी लंबी है जोजिला सुरंग और कब तक बनेगी?
जोजिला सुरंग की कुल लंबाई लगभग 14.15 किलोमीटर होगी। यह भारत की अब तक की सबसे लंबी सड़क सुरंग होगी। इसकी विशेषता यह है कि यह दोनों दिशाओं में यातायात की अनुमति देगी, जिससे यातायात नियंत्रण और सुरक्षा में बड़ी सुविधा मिलेगी।
सरकार का लक्ष्य है कि यह सुरंग साल 2027 तक पूरी तरह से तैयार हो जाए। अगर यह समयसीमा सफलतापूर्वक पूरी की जाती है, तो यह भारत के इतिहास में सुरंग निर्माण की एक ऐतिहासिक उपलब्धि होगी।
SAIL की भूमिका: स्टील का मजबूत आधार
इस महत्त्वपूर्ण परियोजना में स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (SAIL) ने अहम भूमिका निभाई है। SAIL अब तक इस सुरंग के निर्माण के लिए 31,000 टन से भी अधिक स्टील की आपूर्ति कर चुका है। इसमें मुख्य रूप से TMT री-बार्स, स्ट्रक्चरल स्टील और विशेष रूप से डिज़ाइन की गई प्लेट्स शामिल हैं।
SAIL की यह आपूर्ति सुरंग की संरचना को मजबूत, टिकाऊ और मौसम प्रतिरोधी बनाती है। इतने दुर्गम क्षेत्र में, जहां तापमान शून्य से कई डिग्री नीचे चला जाता है, वहां मजबूत निर्माण सामग्री ही स्थायित्व सुनिश्चित कर सकती है।
पर्यटन और रोजगार के नए द्वार
इस सुरंग के बन जाने से लेह-लद्दाख क्षेत्र में पर्यटन को भी जबरदस्त बढ़ावा मिलेगा। वर्तमान में, पर्यटक केवल गर्मियों में ही वहां जा पाते हैं, लेकिन अब पूरे साल आवाजाही संभव हो पाएगी। इससे वहां के होटल, टैक्सी व्यवसाय, गाइड, होमस्टे और अन्य पर्यटन आधारित उद्योगों को स्थायी लाभ होगा।
साथ ही, सुरंग निर्माण और उससे जुड़ी परियोजनाओं के चलते हजारों स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिला है। भविष्य में भी इसके संचालन, मरम्मत और ट्रैफिक मैनेजमेंट के लिए स्थायी नौकरियों का सृजन होगा।
जोजिला सुरंग: तकनीकी चुनौतियों की जीत
जोजिला सुरंग का निर्माण तकनीकी दृष्टिकोण से बेहद चुनौतीपूर्ण है। यह क्षेत्र हिमालय की सबसे कठिन भू-आकृतियों में से एक है, जहां भूस्खलन, बर्फबारी, अत्यधिक ठंड और ऑक्सीजन की कमी जैसी समस्याएं रोज़मर्रा की चुनौती हैं।
इसके बावजूद, भारतीय इंजीनियर और मजदूर दिन-रात काम कर रहे हैं। आधुनिकतम तकनीक और मशीनरी, जैसे कि टनल बोरिंग मशीनें (TBM), रॉक-कटिंग इक्विपमेंट, और डिजिटल निगरानी प्रणाली के जरिए इस प्रोजेक्ट को सुरक्षित और प्रभावशाली ढंग से आगे बढ़ाया जा रहा है।
सुरक्षा की दृष्टि से भी अहम
भारत के लिए यह सुरंग केवल नागरिक उपयोग का ही साधन नहीं है, बल्कि यह सुरक्षा और सामरिक महत्व का भी प्रतीक है। चीन और पाकिस्तान से सटी सीमाओं पर लद्दाख की सामरिक स्थिति बेहद महत्त्वपूर्ण है। युद्ध या आपातकाल की स्थिति में सेना को तेज़ी से आगे भेजने के लिए यह सुरंग लाइफलाइन साबित होगी।
वर्तमान में जो सड़कों पर सेना को भारी वाहनों और गोला-बारूद को भेजने में काफी समय लगता है, वो समय अब कई घंटों से घटकर मात्र कुछ मिनटों में तब्दील हो जाएगा।
सरकार की प्रतिबद्धता और भविष्य की योजनाएं
इस परियोजना को तेजी से आगे बढ़ाने में केंद्र सरकार की इच्छाशक्ति और संसाधन साफ नजर आ रहे हैं। प्रधानमंत्री की ‘कनेक्टेड नॉर्थ-ईस्ट और फ्रंटियर रीजन’ की नीति के तहत यह सुरंग एक अहम कड़ी है।
भविष्य में इसी तर्ज पर लद्दाख और अन्य सीमावर्ती क्षेत्रों में और भी इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स आने की उम्मीद है।