
बिहार की राजनीति हमेशा से चर्चाओं, अटकलों और अजीबो-गरीब बयानों के लिए मशहूर रही है। खासकर जब बात हो राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और लालू परिवार की, तो जनता से लेकर राजनीतिक विश्लेषकों तक की निगाहें एकदम सतर्क हो जाती हैं। इसी सिलसिले में मंगलवार को बिहार विधानसभा के मानसून सत्र में आरजेडी के निलंबित विधायक तेज प्रताप यादव की मौजूदगी और उनकी चुप्पी ने सबका ध्यान अपनी ओर खींच लिया।
जहां एक तरफ आरजेडी के सभी विधायक काले कुर्ते में एसआईआर (SIR) के खिलाफ विरोध दर्ज कराने पहुंचे थे, वहीं तेज प्रताप यादव अकेले सफेद कुर्ता पहनकर सदन में आए, जिससे उनका अलगाव साफ दिखा।
🔍 तेज प्रताप यादव की चुप्पी में क्या है संकेत?
पत्रकारों ने जब उनसे यह सीधा सवाल किया कि “बिहार का अगला मुख्यमंत्री कौन होगा?” तो तेज प्रताप यादव मुस्कराते हुए बिना कोई जवाब दिए आगे बढ़ गए। अब इस चुप्पी के कई मायने निकाले जा रहे हैं।
संभावित वजहें:
राजनीतिक रणनीति का हिस्सा: संभव है कि तेज प्रताप अभी अपने पत्ते खोलना नहीं चाहते। इससे पहले भी वो कई बार “सस्पेंस” बनाए रखने की नीति अपना चुके हैं।
दलों के बीच चल रही खींचतान: पार्टी से निलंबित होने के बावजूद वे परिवार और पार्टी से पूरी तरह अलग नहीं हुए हैं। इसलिए सार्वजनिक मंच पर कोई सीधा बयान देने से बच रहे हैं।
नई योजना की तैयारी: यह भी मुमकिन है कि वे आगामी चुनाव को लेकर कोई बड़ा राजनीतिक दांव खेलने की तैयारी में हैं और वक्त आने पर ही स्थिति साफ करेंगे।
🧾 तेज प्रताप का सफेद कुर्ता बनाम काले कुर्ते का विरोध
मानसून सत्र में जब RJD विधायक काले कुर्ते में पहुंचे तो यह स्पष्ट संदेश था कि वे SIR मुद्दे पर सरकार के खिलाफ एकजुट हैं। लेकिन तेज प्रताप का सफेद कुर्ता कुछ और ही कहानी बयां कर रहा था।
राजनीतिक विश्लेषण:
यह रंगों की राजनीति से अधिक “रवैये की राजनीति” है। तेज प्रताप ने एक बार फिर दिखा दिया कि वह अपनी पार्टी लाइन से अलग सोचते हैं।
सफेद रंग का कुर्ता राजनीतिक रूप से ‘निष्पक्षता’ और ‘स्वतंत्र रुख’ का प्रतीक माना जा सकता है।
ये भी हो सकता है कि तेज प्रताप जानबूझकर खुद को पार्टी की मुखर रणनीति से अलग दिखाना चाह रहे हों, ताकि आगामी कदमों के लिए जमीन तैयार कर सकें।
🗳️ क्या तेज प्रताप यादव अगला चुनाव लड़ेंगे? कहां से?
तेज प्रताप यादव से जब यह पूछा गया कि क्या वो अगला विधानसभा चुनाव लड़ेंगे, तो उन्होंने जवाब दिया था, “चुनाव तो लड़ेंगे ही, लेकिन कहां से लड़ेंगे ये समय आने पर बताएंगे। कोई महुआ कह रहा है, कोई बख्तियारपुर। जहां ज़्यादा मांग होगी, वहां से लड़ेंगे।”
यह बयान साफ इशारा करता है कि वे अब भी खुद को “पॉपुलर नेता” मानते हैं, जो जनता की मांग के हिसाब से क्षेत्र तय करेंगे। उन्होंने महुआ में अपने किए गए कामों का भी जिक्र किया, जो संकेत देता है कि वहां की जनता पर उनका अब भी भरोसा है।
👥 राबड़ी देवी के बयान पर तेज प्रताप की प्रतिक्रिया
राबड़ी देवी ने हाल ही में कहा था कि उनका बेटा निशांत कुमार (तेजस्वी यादव के छोटे भाई) भी मुख्यमंत्री पद के योग्य है। इस पर तेज प्रताप ने बेहद शांत तरीके से कहा कि “अगर माता जी ने ऐसा कहा है, तो जरूर सोच-समझकर ही कहा होगा। मैं शुरू से कहता आ रहा हूं कि युवाओं को आगे आना चाहिए।”
इस बयान में न तो विरोध है और न ही समर्थन—बल्कि एक संतुलित राजनीतिक उत्तर है, जो बताता है कि तेज प्रताप अपने परिवार के भीतर भी संतुलन बनाए रखना चाहते हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि वे टकराव से ज्यादा छवि सुधार और रणनीतिक दूरी की राजनीति कर रहे हैं।
🏛️ नई पार्टी बनाएंगे या निर्दलीय लड़ेंगे?
तेज प्रताप यादव को लेकर एक बड़ी अटकल यह भी है कि क्या वो खुद की पार्टी बनाएंगे? इस सवाल पर उन्होंने पहले ही कह दिया था कि “अभी पार्टी बनाने का कोई इरादा नहीं है।” हालांकि यह कहकर उन्होंने विकल्पों के दरवाज़े पूरी तरह बंद नहीं किए।
राजनीतिक पर्यवेक्षकों की राय:
अगर तेज प्रताप को RJD से दोबारा मौका नहीं मिलता, तो वो निर्दलीय चुनाव लड़ सकते हैं।
वे कुछ छोटे क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर नया राजनीतिक समीकरण भी बना सकते हैं।
यह भी हो सकता है कि वे पार्टी के भीतर ही वापसी की कोशिश करें, और फिलहाल सिर्फ खुद को “सिस्टम के खिलाफ सच्चे संघर्षकर्ता” के रूप में पेश करना चाहते हों।