दिल्ली की मस्जिद में बैठक और यूपी की गरमाई सियासत: अखिलेश यादव पर बीजेपी के तीखे वार

राजनीति में हर कदम का राजनीतिक अर्थ निकाला जाता है, खासकर जब वो कोई बड़ा विपक्षी चेहरा उठाता है। कुछ ऐसा ही हुआ जब समाजवादी पार्टी (सपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने दिल्ली में एक मस्जिद में कथित तौर पर अपने सहयोगी सांसदों के साथ बैठक की। इस मुलाकात की खबर सामने आते ही उत्तर प्रदेश की सियासत में हलचल मच गई और सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी।


🔴 मस्जिद में बैठक और राजनीतिक तूफान की शुरुआत

संसद का मानसून सत्र चल रहा है और उसी दौरान यह खबर सामने आई कि अखिलेश यादव ने दिल्ली की एक मस्जिद में अपने पार्टी के सांसदों और कुछ मौलानाओं के साथ मुलाकात की। इस बैठक का उद्देश्य चाहे जो भी रहा हो, लेकिन भाजपा ने इसे “तुष्टिकरण की राजनीति” की संज्ञा दी और कड़े शब्दों में विरोध दर्ज कराया।

उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने इस बैठक पर सीधा हमला करते हुए कहा,

“मौलाना के साथ बैठकर अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी यह दिखाना चाहते हैं कि वे मुसलमानों के साथ हैं। समाजवादी पार्टी का चरित्र हमेशा से हिन्दू विरोधी रहा है।”


‘जालीदार टोपी’ और तंजों की राजनीति

केशव मौर्य ने X (पूर्व में ट्विटर) पर तंज कसते हुए लिखा:

“मस्जिद गए लेकिन सफेद ‘जालीदार टोपी’ ले जाना भूल गए सपा बहादुर श्री अखिलेश यादव। जब ख्याल ही रखना था, तो कब्जा करने वाली जमात का पूरा ख्याल रखना चाहिए था।”

यह बयान सपा पर परोक्ष रूप से यह आरोप लगाता है कि वह धार्मिक भावनाओं को सिर्फ वोट बैंक के लिए भुना रही है। इससे यह स्पष्ट होता है कि भाजपा इस मुद्दे को आगामी लोकसभा चुनाव से पहले तूल देना चाहती है।


🟠 भाजपा का आरोप: “तुष्टिकरण की राजनीति”

भाजपा के कई नेताओं ने यह कहा है कि समाजवादी पार्टी लगातार एक विशेष वर्ग को खुश करने की राजनीति करती रही है, चाहे वह टिकट बंटवारा हो या फिर चुनावी घोषणाएं। उनका आरोप है कि सपा को सिर्फ अल्पसंख्यक समुदाय की चिंता रहती है और बहुसंख्यकों की भावनाओं की अनदेखी होती है।

केशव मौर्य ने कहा,

“श्री राम जन्मभूमि देश की आस्था का केंद्र है, लेकिन सपा नेताओं को इससे कोई सरोकार नहीं। उनकी आस्था तो सिर्फ वोट बैंक की राजनीति में है।”


🔵 सपा का जवाब: “भाजपा आस्था को भी राजनीति बना देती है”

अखिलेश यादव ने भाजपा के इन आरोपों पर जवाब देते हुए कहा:

“भाजपा यह समझ नहीं पाती कि आस्था लोगों को जोड़ती है, बांटती नहीं। वे हर मुद्दे को सांप्रदायिक रंग देकर समाज में नफरत फैलाना चाहते हैं।”

अखिलेश का कहना है कि वह सभी धर्मों का सम्मान करते हैं और किसी धर्मस्थल में बैठक करना या वहां जाना कोई अपराध नहीं है। उनका इशारा इस ओर था कि भाजपा केवल अपनी सुविधा के अनुसार धार्मिक प्रतीकों का इस्तेमाल करती है।


🗳️ SIR मुद्दे पर भी बयानबाजी

इस सियासी बहस के बीच एक और मुद्दा सामने आया, वह था SIR (Special Identification Revision) यानी मतदाता सूची में संशोधन को लेकर हो रही कार्रवाई। इस मुद्दे पर भी केशव मौर्य ने विपक्ष पर हमला बोला।

उन्होंने कहा:

“अगर कोई व्यक्ति मर चुका है और फिर भी उसके नाम से वोट डाला जा रहा है, तो ऐसे फर्जी वोटरों को हटाना जरूरी है। जो लोग झूठे वोटों से जीते थे, अब उन्हें दिक्कत हो रही है, चाहे वे काले कपड़े पहनें या हरे।”

यह बयान सीधे तौर पर सपा और कांग्रेस जैसे विपक्षी दलों पर निशाना था, जो चुनाव आयोग की SIR प्रक्रिया पर सवाल उठा रहे हैं। भाजपा का मानना है कि यह प्रक्रिया पारदर्शिता लाने के लिए है, जबकि विपक्ष इसे राजनीतिक चाल बता रहा है।


🧐 राजनीतिक समीकरण और 2024 की तैयारी

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा और सपा दोनों ही 2024 लोकसभा चुनाव के लिए अपने-अपने वर्गों को साधने में जुट गए हैं। ऐसे में मस्जिद में हुई बैठक, टोपी से जुड़ा कटाक्ष और SIR विवाद, ये सब आने वाले चुनावों की ज़मीन तैयार करने वाले पैंतरे हैं।

जहां भाजपा राम मंदिर और आस्था को केंद्र में रखकर ‘बहुसंख्यक कार्ड’ खेल रही है, वहीं सपा खुद को ‘संविधान और धर्मनिरपेक्षता’ के पक्ष में खड़ा करके अल्पसंख्यक और पिछड़े वर्गों को जोड़ने की कोशिश कर रही है।

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