 
									ढाका/नई दिल्ली: बांग्लादेश, जो कभी दक्षिण एशिया में एक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक राष्ट्र के रूप में जाना जाता था, अब धीरे-धीरे इस्लामी कट्टरता की ओर बढ़ता दिख रहा है। इस बदलाव का केंद्रबिंदु हैं मोहम्मद यूनुस, जिनकी अगुवाई में बनी अंतरिम सरकार ने बीते कुछ महीनों में कई ऐसे कदम उठाए हैं जो न केवल देश के आंतरिक सामाजिक-सांस्कृतिक ताने-बाने को प्रभावित कर रहे हैं, बल्कि भारत समेत पूरे क्षेत्र की सुरक्षा के लिए गंभीर संकेत दे रहे हैं।
🔄 राजनीतिक उलटफेर: कैसे सत्ता में आए मोहम्मद यूनुस?
2024 के जून-जुलाई में बांग्लादेश की राजधानी ढाका समेत कई शहरों में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए। जनता में बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और पुलिसिया दमन के खिलाफ गुस्सा था। इन प्रदर्शनों ने तब एक निर्णायक मोड़ लिया जब 5 अगस्त को प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार गिरा दी गई।
इसके बाद मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में एक “अंतरिम सरकार” का गठन किया गया, जिसे बांग्लादेश की जनता के एक वर्ग ने परिवर्तन की उम्मीद के तौर पर देखा। लेकिन यूनुस के सत्ता में आते ही देश की नीतियां, प्रशासन और समाजिक दिशा पूरी तरह बदलने लगी।
🧕 धर्मनिरपेक्ष से कट्टर इस्लामी राज्य की ओर बांग्लादेश?
जाने-माने पत्रकार सलाहुद्दीन शोएब चौधरी ने हाल ही में अपने लेख में इस चिंता को गहराई से उठाया है कि कैसे बांग्लादेश, जो कभी धार्मिक सहिष्णुता और सांस्कृतिक विविधता के लिए जाना जाता था, अब एक “इस्लामी गणराज्य” बनने की ओर बढ़ रहा है।
प्रशासनिक बदलाव:
- यूनुस सरकार ने बीते 11 महीनों में पुलिस, बॉर्डर गार्ड और कोस्ट गार्ड में 17,000 नई भर्तियाँ की हैं। 
- इनमें से अधिकांश का कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों से सीधा संबंध है। 
- इनमें से कई नवभर्ती अनुभवहीन और बिना ट्रेनिंग के हैं, जिन्हें सिर्फ उनकी धार्मिक पृष्ठभूमि के कारण नियुक्त किया गया है। 
यह कदम न सिर्फ सुरक्षा बलों के पेशेवर मानकों को गिरा रहा है, बल्कि बांग्लादेश के संवैधानिक ढांचे के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को भी कमजोर कर रहा है।
🤝 पाकिस्तान और तुर्की की भूमिका: पर्दे के पीछे के खिलाड़ी
बांग्लादेश में हो रहे इस बदलाव में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI और तुर्की के राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप एर्दोगन की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
पाकिस्तान की भूमिका:
- ISI ने कट्टरपंथी संगठनों को फंडिंग और लॉजिस्टिक सहायता दी है। 
- यूनुस सरकार को राजनीतिक सलाह और सुरक्षा संबंधी रणनीतियाँ पाकिस्तान की ओर से मिल रही हैं। 
तुर्की की एंट्री:
- 6 जुलाई को यूनुस ने ढाका में अंतरराष्ट्रीय इस्लामिक NGO समूहों की मेजबानी की। 
- इस मीटिंग में तुर्की, मलेशिया, पाकिस्तान और इंडोनेशिया के संगठन शामिल थे। 
- यूनुस ने इसे “मुस्लिम दुनिया की एकता के लिए” जरूरी बताया। 
सैन्य सहयोग:
- तुर्की के रक्षा उद्योग सचिव ने बांग्लादेश के सेना प्रमुख से मुलाकात की। 
- तुर्की ने बांग्लादेश को संयुक्त रूप से हथियार और सैन्य उपकरण बनाने का प्रस्ताव दिया है। 
यह साफ संकेत है कि तुर्की एर्दोगन की विचारधारा को दक्षिण एशिया में स्थापित करना चाहता है, और बांग्लादेश उसके लिए प्रवेश द्वार बन रहा है।
🛑 शरिया कानून की तैयारी? हिंदुओं पर संकट
मोहम्मद यूनुस के करीबी सहयोगी मुफ्ती फजलुल करीम ने कई बार सार्वजनिक रूप से यह कहा है कि बांग्लादेश को शरिया कानून के अनुसार चलाया जाना चाहिए। उनका मानना है कि:
“हिंदुओं को तभी अधिकार मिलेंगे जब वे शरिया कानून का पालन करेंगे।”
यह बयान न केवल बांग्लादेश के हिंदू अल्पसंख्यकों के लिए खतरा है, बल्कि पूरे समाज को धार्मिक आधार पर विभाजित करने की कोशिश है। इससे देश की धर्मनिरपेक्ष छवि पूरी तरह ध्वस्त होती जा रही है।
🇮🇳 भारत के लिए क्यों खतरनाक है ये बदलाव?
बांग्लादेश, भारत का सीमावर्ती पड़ोसी है। दोनों देशों के बीच लगभग 4,100 किलोमीटर की साझा सीमा है। बांग्लादेश में अगर कट्टरपंथ मजबूत होता है, तो इसके तीन गंभीर परिणाम भारत पर हो सकते हैं:
- सीमा पार आतंकवाद में वृद्धि: बांग्लादेश से कट्टरपंथी संगठन भारत में घुसपैठ या हमले की योजना बना सकते हैं। 
- अवैध प्रवास और रिफ्यूजी संकट: धार्मिक उत्पीड़न के कारण अल्पसंख्यक भारत की ओर पलायन कर सकते हैं। 
- पूर्वोत्तर भारत में अस्थिरता: भारत के असम, त्रिपुरा और बंगाल में सामाजिक तनाव पैदा हो सकता है। 
पत्रकार चौधरी के अनुसार, भारत को इस पर सिर्फ सुरक्षा एजेंसियों के नजरिए से नहीं, बल्कि राजनीतिक और कूटनीतिक स्तर पर भी सक्रियता दिखानी होगी।
🔚 निष्कर्ष: क्या फिर से बदल जाएगा बांग्लादेश का चेहरा?
बांग्लादेश की राजनीति जिस दिशा में जा रही है, वह सिर्फ एक राष्ट्र की नीतियों का परिवर्तन नहीं, बल्कि पूरे दक्षिण एशिया की भूराजनीतिक स्थिरता पर असर डालने वाला बदलाव है।
मोहम्मद यूनुस की सरकार, जिस तरह इस्लामी संगठनों के प्रभाव में आ रही है, और जिस तेजी से पाकिस्तानी और तुर्की ताकतें सक्रिय हो रही हैं — वह पूरे क्षेत्र के लिए सुरक्षा और सांस्कृतिक अस्थिरता का संकेत है।
भारत को न केवल बांग्लादेश में इस बदलाव पर नज़र रखनी होगी, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंचों पर इस मुद्दे को उठाकर विश्व समुदाय को भी आगाह करना होगा।





















