
राजस्थान में नया शैक्षणिक सत्र शुरू हुए ग्यारह दिन हो चुके हैं, लेकिन राज्य के अधिकांश सरकारी स्कूलों में अब तक निःशुल्क पाठ्यपुस्तकें नहीं पहुंच पाई हैं। इससे बच्चों की पढ़ाई रुक गई है और नए दाखिलों पर भी असर पड़ा है।
🎒 60 लाख बच्चों की पढ़ाई प्रभावित
राज्य में करीब 66 हजार सरकारी स्कूल हैं, जहां 78 लाख से ज्यादा छात्र पढ़ाई करते हैं। सरकार हर साल आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को मुफ्त में किताबें देती है, लेकिन इस बार भी किताबें समय पर नहीं पहुंच सकीं। इसका असर करीब 60 लाख छात्रों की पढ़ाई पर पड़ा है।
📦 किताबों की सप्लाई 25% तक सीमित
शिक्षा सत्र एक जुलाई से शुरू हो चुका है, लेकिन अब तक सिर्फ 25 प्रतिशत स्कूलों तक ही किताबें पहुंची हैं। इनमें भी कई कक्षाओं की किताबें अधूरी हैं। जयपुर और जोधपुर जैसे बड़े शहरों में स्थिति थोड़ी बेहतर है, लेकिन ग्रामीण और दूर-दराज के इलाकों में छात्रों को अब तक किताबें नहीं मिल पाई हैं।
🏫 बिना किताब के स्कूल, नए एडमिशन भी रुके
कई स्कूलों में किताबें न होने के कारण बच्चों की उपस्थिति बेहद कम है। कुछ स्कूलों में तो नए दाखिले तक नहीं हो रहे हैं। साथ ही एक शर्त ये भी रखी गई है कि जो छात्र पिछले साल की किताबें लौटाएंगे, उन्हें ही नई किताबें मिलेंगी।
🎯 सरकार का लक्ष्य, 15 जुलाई तक वितरण
राज्य के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने कहा है कि 15 जुलाई तक सभी स्कूलों में किताबें पहुंचाने की कोशिश की जा रही है। इस वर्ष लगभग 7.5 करोड़ किताबें बांटी जानी हैं।
❓ हर साल देरी क्यों?
शिक्षा से जुड़े जानकारों का मानना है कि सरकार को हर साल जून में ही किताबों की आपूर्ति पूरी कर लेनी चाहिए। शिक्षा विशेषज्ञों और शिक्षकों ने बताया कि किताबों की देरी से बच्चों, शिक्षकों और अभिभावकों तीनों पर असर पड़ता है। बच्चे स्कूल आने से कतराते हैं और पढ़ाई का रूटीन बिगड़ जाता है।
✅ इस बार हालात कुछ बेहतर, लेकिन सुधार की जरूरत
कुछ शिक्षकों का कहना है कि पिछले वर्षों की तुलना में इस बार हालात थोड़े बेहतर हैं, क्योंकि पहले किताबों के वितरण में 2-2 महीने लग जाते थे। लेकिन फिर भी, समय पर वितरण नहीं होना एक बड़ी चिंता का विषय बना हुआ है।