
10 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट में वोटर लिस्ट में हो रहे विशेष संशोधन (Special Intensive Revision) को लेकर एक महत्वपूर्ण सुनवाई हुई। मामला विशेष रूप से बिहार में आगामी चुनावों से जुड़ा हुआ है, जहां मतदाता सूची को अपडेट करने की प्रक्रिया पर सवाल उठाए गए हैं।
🔍 याचिकाकर्ताओं की चिंता – पारदर्शिता पर सवाल
याचिका दाखिल करने वालों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायण ने अदालत में दलील दी कि इस बार चुनाव आयोग ने “स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन” जैसा नया शब्द इस्तेमाल किया है, जबकि कानून में सिर्फ “सारांश” और “विस्तृत” संशोधन का ही उल्लेख है।
उन्होंने कहा कि इतनी बड़ी संख्या में (लगभग 7 करोड़) मतदाताओं की सूची को बहुत कम समय में अपडेट करना गरीब और हाशिए पर खड़े वर्गों को प्रभावित कर सकता है। इसके अलावा, पहचान पत्रों की सूची सीमित होने से कई पात्र लोग बाहर हो सकते हैं।
⚖️ सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी – पारदर्शिता बनी रहे
जस्टिस सुधांशु धुलिया और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि वोटर लिस्ट का अपडेट करना चुनाव आयोग की संवैधानिक ज़िम्मेदारी है। हालांकि, प्रक्रिया पूरी तरह पारदर्शी और न्यायसंगत होनी चाहिए।
न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि आधार कार्ड नागरिकता का प्रमाण नहीं है, लेकिन मतदाता बनने के लिए नागरिकता की पुष्टि जरूरी है। साथ ही कोर्ट ने यह सवाल भी उठाया कि जिनका नाम पहले से लिस्ट में है, उनसे दोबारा प्रमाण क्यों मांगे जा रहे हैं?
👨⚖️ वरिष्ठ वकीलों की दलील – नागरिकता तय करना आयोग का काम नहीं
कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी जैसे वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने तर्क दिया कि चुनाव आयोग को सिर्फ मतदाता सूची बनानी होती है, न कि लोगों की नागरिकता तय करनी। उन्होंने कहा कि देश में बहुत से नागरिकों के पास पासपोर्ट या जन्म प्रमाणपत्र नहीं होते। ऐसे में यदि मनरेगा कार्ड या अन्य दस्तावेज अस्वीकार किए जाते हैं, तो गरीब तबका मतदान के अधिकार से वंचित रह सकता है।
सिब्बल ने सुझाव दिया कि यदि किसी व्यक्ति का नाम सूची से हटाया जाता है, तो उसे पूर्व सूचना और सुनवाई का मौका अवश्य मिलना चाहिए।
🗂️ चुनाव आयोग की सफाई – सभी को मिलेगा पूरा अवसर
आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कोर्ट को बताया कि संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत आयोग के पास यह प्रक्रिया शुरू करने का अधिकार है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह केवल एक अपडेट प्रक्रिया है, और यह कहना गलत है कि नामों को बिना कारण हटाया जा रहा है।
उन्होंने यह भी कहा कि ड्राफ्ट लिस्ट जारी होने के बाद हर व्यक्ति को आपत्ति जताने और अपनी बात रखने का मौका मिलेगा। बिना उचित प्रक्रिया के किसी का नाम नहीं हटाया जाएगा।
📋 सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से मांगा स्पष्टीकरण – तीन मुख्य सवाल
सुनवाई के अंत में सुप्रीम कोर्ट ने आयोग से तीन महत्वपूर्ण सवालों पर जवाब मांगा:
क्या यह विशेष प्रक्रिया संविधान के तहत वैध है?
यह प्रक्रिया किन नियमों और दिशानिर्देशों के अंतर्गत चलाई जा रही है?
चुनाव से ठीक पहले यह प्रक्रिया शुरू करना क्या समयानुकूल निर्णय है?
न्यायालय ने कहा कि मामला लोकतंत्र से जुड़ा है, इसलिए हर पक्ष की गंभीरता से जांच जरूरी है। इस विषय पर अब अगली सुनवाई दोपहर 2 बजे होगी।
📝 आपका योगदान ज़रूरी है!
यदि आप मतदाता हैं, तो यह सही समय है अपनी जानकारी अपडेट करने का।
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