 
									राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले में स्थित एशिया के सबसे बड़े कच्चे बांधों में से एक मोरेल बांध भारी बारिश के चलते टूट गया, जिससे आसपास के गांवों में हड़कंप मच गया। यह घटना बौंली उपखंड के लाखनपुर गांव में हुई, जहां पिछले कुछ दिनों से हो रही तेज बारिश ने बांध पर इतना दबाव बना दिया कि वह मिट्टी की दीवारों को सह नहीं सका। नतीजतन, बांध टूट गया और देखते ही देखते गांवों में पानी का सैलाब घुस गया।
कैसे हुआ हादसा?
घटना की शुरुआत उस समय हुई जब तेज बारिश के कारण मोरेल बांध पूरी तरह से भर गया। बांध को बचाने के लिए ग्राम पंचायत द्वारा पानी की निकासी का वैकल्पिक मार्ग बनाया गया था, लेकिन पानी का दबाव इतना अधिक था कि वह रास्ता भी नाकाफी साबित हुआ। धीरे-धीरे बांध की मिट्टी कटने लगी और कुछ ही समय में पूरी दीवार ताश के पत्तों की तरह ढह गई। पानी का सैलाब आसपास के इलाकों में बेकाबू हो गया।
किन गांवों पर पड़ा असर?
इस हादसे का सीधा असर लाखनपुर, गोल गोठड़ा और रतनपुरा गांवों पर पड़ा। इन गांवों के कई घरों में पानी घुस गया, लोग डर के मारे घर छोड़कर भागते नजर आए। खेतों में खड़ी फसलें पूरी तरह बर्बाद हो गईं। कुछ लोगों के मवेशी पानी के तेज बहाव में बह गए।
लाखनपुर गांव के स्कूल के पास स्थित दुकानों और घरों में भी पानी भर गया। कई लोगों की जरूरी चीजें जैसे राशन, इलेक्ट्रॉनिक सामान और दस्तावेज नष्ट हो गए।
सड़क मार्ग भी हुआ प्रभावित
बांध टूटने के कारण बोरखेड़ा मार्ग पर करीब डेढ़ घंटे तक यातायात पूरी तरह बाधित रहा। पानी का बहाव इतना तेज था कि वाहनों की आवाजाही संभव नहीं रही। प्रशासन की ओर से रास्ते को दोनों ओर से बंद कर दिया गया ताकि किसी अनहोनी से बचा जा सके।
जनहानि नहीं, लेकिन आर्थिक नुकसान भारी
इस घटना में सबसे राहत की बात यह रही कि कोई जनहानि नहीं हुई। बांध दिन के समय टूटा, जब ज्यादातर लोग जाग रहे थे और समय रहते सुरक्षित स्थानों की ओर निकल गए। अगर यह घटना रात को होती, तो इससे बड़े पैमाने पर जानमाल का नुकसान हो सकता था।
हालांकि, कृषि और पशुपालन क्षेत्र को भारी नुकसान पहुंचा है। खेतों में लगी मूंग, ग्वार और बाजरे की फसलें बर्बाद हो गईं। कई किसानों की सालभर की मेहनत पानी में बह गई। प्रशासन द्वारा अभी तक नुकसान का आंकलन किया जा रहा है, लेकिन प्रारंभिक अनुमान के अनुसार करोड़ों रुपये का नुकसान बताया जा रहा है।
प्रशासन की प्रतिक्रिया और राहत कार्य
घटना की सूचना मिलते ही स्थानीय प्रशासन और पुलिस विभाग की टीमें मौके पर पहुंचीं। एसडीआरएफ (State Disaster Response Force) की मदद से प्रभावित गांवों में बचाव कार्य चलाए गए। लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया गया और प्रभावित इलाकों में ट्रैक्टर, नाव और जेसीबी की मदद से जल निकासी शुरू की गई।
सवाई माधोपुर के जिला कलेक्टर ने स्थिति पर नजर रखते हुए अधिकारियों को निर्देश दिया है कि जल्द से जल्द राहत सामग्री जैसे सूखा राशन, पानी की बोतलें, टेंट और प्राथमिक उपचार की व्यवस्था की जाए।
जल प्रबंधन पर फिर उठे सवाल
यह हादसा सिर्फ एक प्राकृतिक आपदा नहीं, बल्कि जल प्रबंधन की विफलता की बड़ी मिसाल भी बनकर सामने आया है। सवाल यह उठ रहा है कि यदि यह बांध एशिया का सबसे बड़ा कच्चा बांध था, तो इसकी संरचना इतनी कमजोर कैसे रही? क्या नियमित रखरखाव और समय रहते जरूरी मरम्मत हुई थी?
स्थानीय लोगों का आरोप है कि बांध की मिट्टी की दीवारों की समय-समय पर जांच नहीं की गई। कई बार ग्राम पंचायत और स्थानीय प्रशासन को शिकायत की गई थी, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई।
पिछले साल भी टूटा था बांध
चौंकाने वाली बात यह है कि यह दूसरा साल है जब यह बांध ओवरफ्लो होकर टूटा है। पिछले वर्ष भी इसी तरह की भारी बारिश के चलते बांध का एक हिस्सा क्षतिग्रस्त हो गया था, लेकिन उस समय नुकसान सीमित था। बावजूद इसके कोई स्थायी समाधान नहीं निकाला गया, जिसका नतीजा इस साल और भयावह रूप में सामने आया।
स्थानीय लोगों की मांग: मजबूत संरचना और स्थायी समाधान
घटना के बाद स्थानीय लोगों में रोष है। उनका कहना है कि प्रशासन केवल आपदा के समय एक्टिव होता है, बाकी समय बांधों की मरम्मत और जांच को लेकर लापरवाही बरती जाती है। ग्राम पंचायत स्तर पर स्थायी समाधान की मांग की जा रही है – जिसमें कंक्रीट के मजबूत बांध का निर्माण हो और आसपास के जल निकासी के लिए उपयुक्त इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार किया जाए।




















