हिंद-प्रशांत में बढ़ेगा अमेरिका-चीन तनाव? ऑस्ट्रेलिया में US आर्मी ने किया टाइफून मिसाइल का लाइव टेस्ट, बौखलाएगा ड्रैगन!

वॉशिंगटन/बीजिंग/कैनबरा: अमेरिका और चीन के बीच भू-राजनीतिक टकराव अब एक नए मोड़ की ओर बढ़ रहा है। इस बार मुद्दा है हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी सेना द्वारा एक बेहद शक्तिशाली मिसाइल प्रणाली — टाइफून मिड-रेंज कैपेबिलिटी (Typhon MRC) — का ऑस्ट्रेलिया में लाइव फायर परीक्षण। अमेरिकी सेना ने इसे 15 जुलाई से शुरू हुए बहुराष्ट्रीय सैन्य अभ्यास टैलिसमैन सेबर के तहत अंजाम दिया।

यह पहली बार है जब अमेरिका ने अपनी इस प्रणाली का अपने देश से बाहर परीक्षण किया है। साथ ही यह फिलीपींस के बाद इस सिस्टम की हिंद-प्रशांत में दूसरी सक्रिय तैनाती मानी जा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका की यह सैन्य गतिविधि चीन को सीधी चुनौती है और आने वाले समय में यह दोनों शक्तियों के बीच तनाव को और गहरा कर सकती है।


🌏 टैलिसमैन सेबर 2025: 19 देशों की सैन्य एकता

ऑस्ट्रेलिया में हो रहे इस बड़े पैमाने के सैन्य अभ्यास में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान, फ्रांस, यूके, जर्मनी, कनाडा, फिलीपींस, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, थाईलैंड, फिजी, पापुआ न्यू गिनी, टोंगा, इंडोनेशिया, नॉर्वे, न्यूजीलैंड और नीदरलैंड जैसे 19 देश शामिल हैं। इस अभ्यास का उद्देश्य है सामूहिक सुरक्षा तैयारियों को मजबूत करना, साझा रणनीतिक सोच को विकसित करना और एक-दूसरे के साथ सहयोग को बढ़ाना।

टैलिसमैन सेबर का यह 10वां संस्करण है, और इसे अब तक का सबसे बड़ा अभ्यास बताया जा रहा है।


🚀 टाइफून MRC: अमेरिका की अगली पीढ़ी की मिसाइल प्रणाली

टाइफून मिड-रेंज कैपेबिलिटी प्रणाली अमेरिकी सेना की एक अत्याधुनिक लंबी दूरी की हथियार प्रणाली है, जिसे खास तौर पर समुद्री क्षेत्र में जहाजों और रणनीतिक लक्ष्यों को नष्ट करने के लिए विकसित किया गया है।

इसकी खासियतें:

  • लॉन्चर की संख्या: एक बैटरी में 4 लॉन्चर होते हैं।

  • प्रत्येक लॉन्चर में क्षमता: 4 मिसाइलें एकसाथ ले जाने की क्षमता।

  • फायरिंग ग्रुप: 16 मिसाइलें एक बार में फायर करने की क्षमता रखती है।

  • लॉन्च तकनीक: MK 41 वर्टिकल लॉन्च सिस्टम पर आधारित – यह वही तकनीक है जो अमेरिकी नौसेना के युद्धपोतों पर भी मौजूद है।

  • सटीक मारक क्षमता: टाइफून मिसाइल सिस्टम 1,800 से 2,500 किलोमीटर की दूरी तक सटीक निशाना साध सकता है।

यह प्रणाली न केवल समुद्री लक्ष्यों को निशाना बना सकती है, बल्कि ज़मीन पर स्थिर या चलायमान सैन्य ठिकानों को भी खत्म करने में सक्षम है।


🐉 चीन को क्यों है इस परीक्षण से आपत्ति?

चीन पहले से ही हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अमेरिका की सैन्य गतिविधियों को अपने लिए खतरा मानता आया है। हाल के वर्षों में चीन ने दक्षिण चीन सागर, ताइवान जलडमरूमध्य और पूर्वी चीन सागर में आक्रामक सैन्य नीति अपनाई है। बीजिंग अपने कृत्रिम द्वीपों और नौसैनिक अड्डों के जरिए पूरे क्षेत्र पर प्रभाव बनाना चाहता है।

बीजिंग की प्रतिक्रिया की संभावनाएं:

  • कूटनीतिक विरोध दर्ज कर सकता है।

  • क्षेत्र में अपनी सैन्य गतिविधियां बढ़ा सकता है।

  • “हथियारों की दौड़” के खतरे की चेतावनी दे सकता है।

चीन पहले ही कह चुका है कि वह अपने पड़ोस में लंबी दूरी की अमेरिकी मिसाइलों की तैनाती को उकसावे की कार्रवाई मानता है और इससे क्षेत्रीय स्थिरता पर असर पड़ेगा।


🛡️ फिलीपींस के बाद अब ऑस्ट्रेलिया में भी टाइफून की तैनाती क्यों अहम है?

फिलीपींस में पहले ही अमेरिकी सेना टाइफून प्रणाली की तैनाती कर चुकी है। वहां से यह प्रणाली दक्षिण चीन सागर में चीन के कृत्रिम द्वीपों और सैन्य ठिकानों तक आसानी से पहुंच बना सकती है।

अब ऑस्ट्रेलिया में इस प्रणाली का परीक्षण और संभावित तैनाती चीन के लिए “दोतरफा घेराव” जैसी स्थिति बनाती है। एक तरफ दक्षिण में ऑस्ट्रेलिया और दूसरी तरफ उत्तर में फिलीपींस — दोनों जगह से चीन की नौसैनिक गतिविधियों पर नजर रखना संभव होगा।

इसलिए ऑस्ट्रेलिया में टाइफून का यह लाइव फायर परीक्षण सिर्फ तकनीकी या अभ्यास भर नहीं है — यह रणनीतिक और राजनीतिक संकेत भी है।


📢 चीन की हालिया हरकतें: तनाव की जड़ में क्या है?

कुछ महीनों पहले चीन ने बिना सूचना दिए ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के पास लाइव फायर ड्रिल की थी। इसे दोनों देशों ने क्षेत्रीय संप्रभुता का उल्लंघन और अकारण उकसावे की कार्रवाई कहा था।

अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया का यह जवाबी शक्ति प्रदर्शन “शक्ति संतुलन” बनाए रखने की कोशिश है। यह संदेश है कि हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सिर्फ चीन ही ताकतवर नहीं है, बल्कि सहयोगी लोकतांत्रिक राष्ट्र मिलकर उसका मुकाबला करने के लिए तैयार हैं।


🔍 भविष्य की तस्वीर: क्या होगा आगे?

  • अमेरिका अपने क्वाड (QUAD) साझेदारों के साथ सैन्य एकता को और गहरा करेगा।

  • ऑस्ट्रेलिया और फिलीपींस में टाइफून जैसे सिस्टम की तैनाती से चीन की आक्रामक नीतियों पर अंकुश लगाने की कोशिश होगी।

  • चीन संभवतः इस कदम को “क्षेत्रीय अस्थिरता” और “सैन्य उकसावे” के रूप में प्रचारित कर सकता है।

  • बीजिंग इस बहाने अपने अस्त्र-शस्त्र भंडार को और तेज़ी से बढ़ा सकता है।


🔚 निष्कर्ष: हिंद-प्रशांत की नई भूराजनीति

अमेरिका द्वारा ऑस्ट्रेलिया में टाइफून मिसाइल का परीक्षण केवल एक सैन्य अभ्यास नहीं, बल्कि एक रणनीतिक बयान है — जिसमें स्पष्ट संकेत है कि अमेरिका और उसके सहयोगी देश हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति बनाए रखने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं।

अब देखना यह है कि क्या चीन इस परीक्षण को गंभीर चुनौती मानते हुए प्रतिकूल कार्रवाई करता है, या फिर कूटनीतिक स्तर पर जवाब देता है। लेकिन एक बात तो तय है — हिंद-प्रशांत अब सिर्फ व्यापार का गलियारा नहीं, बल्कि वैश्विक शक्ति संघर्ष का नया केंद्र बनता जा रहा है।

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