450 साल पुराना ‘शाही पुल’ आज भी मजबूत, लेकिन नए पुल क्यों बार-बार गिर रहे हैं?

भारत में जहां आधुनिक तकनीक से बने पुल आए दिन गिरते नजर आ रहे हैं, वहीं उत्तर प्रदेश के जौनपुर में 16वीं सदी में बना एक ऐतिहासिक पुल आज भी मजबूती से खड़ा है। यह पुल, जिसे ‘शाही पुल’ कहा जाता है, एक उदाहरण बन गया है – इंजीनियरिंग के उस दौर की ताकत का, जब सीमेंट नहीं था लेकिन टिकाऊपन था।


🏗️ नए पुल ढह रहे, पुराना क्यों टिका है?

हाल ही में गुजरात के वडोदरा में एक पुल का हिस्सा गिरने से 13 लोगों की जान चली गई। ये पुल 1985 में बना था। जबकि जौनपुर का शाही पुल, जो 1568-69 में अकबर के समय बनाया गया था, आज भी रोज़ाना हजारों वाहनों का भार झेल रहा है। सवाल उठता है – आखिर क्यों नए पुल टिक नहीं पाते?


🏛️ शाही पुल: इतिहास और मजबूती का संगम

  • इस पुल का निर्माण मुगल इंजीनियर मुल्ला मुहम्मद हुसैन शिराज़ी के निर्देशन में हुआ था।

  • गोमती नदी पर बना यह पुल अब भी यातायात के लिए पूरी तरह चालू है।

  • इसे “अटाला पुल” के नाम से भी जाना जाता है।


🧱 बिना सीमेंट, फिर भी इतना मजबूत क्यों?

शाही पुल की सबसे बड़ी खासियत है इसकी निर्माण सामग्री:

  • इसमें सीमेंट का नामोनिशान नहीं है, क्योंकि तब सीमेंट का इस्तेमाल नहीं होता था।

  • यह बना है पत्थर, सुरखी चूना, बेल का गूदा, गुड़ और लाख जैसे तत्वों के मिश्रण से।

  • यह मिश्रण समय के साथ सख्त भी हो जाता है और लचीला भी बना रहता है।


⚙️ आर्च डिजाइन और फ्लड मैनेजमेंट

  • पुल में कुल 28 मेहराबें (arches) हैं, जो पानी के बहाव और दबाव को समान रूप से बांटती हैं।

  • यह फ्लड प्रूफ डिज़ाइन आज भी कई इंजीनियरिंग छात्रों के लिए केस स्टडी है।

  • इसमें बने बड़े निकासी छिद्र बाढ़ के समय जल बहाव का प्रबंधन करते हैं।


🧰 लो मेंटेनेंस, नो छेड़छाड़ – यही राज है टिकाऊपन का

  • इस पुल को अत्यधिक मरम्मत या आधुनिक तकनीक से छेड़ने की जरूरत नहीं पड़ी।

  • मूल संरचना जैसी की तैसी बनी रही, जो इसकी स्थिरता को बनाए रखने में मददगार रही।


🚧 नए पुल क्यों हो रहे हैं फेल?

भारत में 2020–2023 के बीच राष्ट्रीय राजमार्गों पर 32 पुल गिर चुके हैं, और ये आंकड़े राज्य स्तरीय पुलों को शामिल नहीं करते।

मुख्य कारण:

  • घटिया क्वालिटी का मटेरियल

  • घटिया सीमेंट और सरिया

  • डिज़ाइन में लापरवाही

  • जलवायु डेटा को नजरअंदाज करना

  • अत्यधिक ट्रैफिक और ओवरलोडिंग

  • समय पर मरम्मत न होना


📉 पुलों की जांच: क्या प्रक्रिया है?

  • नियमों के अनुसार हर पुल की 6 महीने में एक बार और मानसून से पहले/बाद में जांच होनी चाहिए।

  • हर 3-5 साल में एक गहन जांच अनिवार्य है।

  • हालांकि, यह प्रक्रिया नियमित रूप से नहीं होती, और कई बार पुल बिना जांच के ही सालों चलते रहते हैं।


क्या पुलों को फिटनेस सर्टिफिकेट मिलता है?

  • भारत में फिलहाल ‘फिटनेस सर्टिफिकेट’ जैसी कोई अनिवार्य व्यवस्था नहीं है

  • हां, किसी पुल को लेकर शिकायत या खतरा हो, तो विशेषज्ञ टीम जांच कर सकती है।


📍 राज्य सरकारें क्या करती हैं?

  • स्टेट हाईवे पर आने वाले पुलों का रखरखाव राज्य सरकार के PWD या सड़क प्राधिकरण के जिम्मे होता है।

  • शिकायत आने पर निरीक्षण, डायवर्जन या अस्थायी बंद करने के निर्णय लिए जाते हैं।


🔚 सीख क्या है?

जौनपुर का शाही पुल सिर्फ एक पुल नहीं, बल्कि हमारी इंजीनियरिंग विरासत की मिसाल है। जहां एक तरफ आधुनिक तकनीक विफल हो रही है, वहीं इतिहास हमें सिखा रहा है कि टिकाऊ निर्माण सिर्फ नई तकनीक से नहीं, बल्कि ईमानदारी, सटीक डिज़ाइन और मजबूत इरादों से होता है।

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