Russia-Ukraine War Update: इस्तांबुल में नई शांति वार्ता की तैयारी, जेलेंस्की ने पुतिन को किया आमंत्रित, क्या निकलेगा कोई हल?

रूस और यूक्रेन के बीच जारी युद्ध को दो साल से भी ज़्यादा हो चुके हैं, लेकिन इस खूनी संघर्ष का अब तक कोई ठोस समाधान नहीं निकल पाया है। हालांकि एक बार फिर से दोनों देशों के बीच शांति वार्ता की संभावनाएं सामने आई हैं। यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने बताया कि इस सप्ताह तुर्की के इस्तांबुल शहर में एक नई बैठक प्रस्तावित है, जिसका उद्देश्य इस युद्ध को समाप्त करने की दिशा में कूटनीतिक पहल करना है।

वार्ता को लेकर उम्मीदें तो हैं, लेकिन रूस की ओर से फिलहाल कोई स्पष्ट या सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं आई है, जिससे इस प्रक्रिया की सफलता को लेकर संदेह बना हुआ है।


क्या है ताजा अपडेट?

यूक्रेन के राष्ट्रपति ने सोमवार को एक टेलीविज़न संबोधन में जानकारी दी कि उन्होंने यूक्रेन की राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के प्रमुख रुसतेम उमेरोव से बातचीत की है, जिसमें कैदियों की अदला-बदली और तुर्की में होने वाली शांति वार्ता की तैयारियों पर चर्चा हुई है।

जेलेंस्की ने साफ तौर पर कहा कि उनका उद्देश्य युद्ध समाप्त करने की दिशा में ईमानदारी से बातचीत करना है। इस प्रस्ताव के तहत बैठक 23 जुलाई को प्रस्तावित है, लेकिन रूसी समाचार एजेंसी TASS ने सूत्रों के हवाले से दावा किया है कि बैठक 24 जुलाई को हो सकती है। ऐसे में तारीख को लेकर अभी भी स्पष्टता नहीं है।


पिछली वार्ताओं से क्या सीखा गया?

इस्तांबुल में इससे पहले भी रूस और यूक्रेन के प्रतिनिधियों के बीच दो दौर की बातचीत हो चुकी है, लेकिन उनमें से किसी भी बैठक में ठोस परिणाम सामने नहीं आया। हर बार या तो दोनों पक्षों के एजेंडे मेल नहीं खाते, या फिर मध्यस्थता कर रहे देशों की भूमिका सीमित रह जाती है।

विशेषज्ञ मानते हैं कि जब तक रूस और यूक्रेन अपनी मूल मांगों से कुछ समझौता नहीं करते, तब तक कोई भी बातचीत महज औपचारिकता बनकर रह जाएगी।


रूस का रुख: शांति या रणनीति?

जहां जेलेंस्की शांति के लिए खुले मन से बातचीत का प्रस्ताव दे रहे हैं, वहीं रूस की ओर से अब तक केवल राजनयिक स्तर पर बयानबाज़ी हो रही है। क्रेमलिन ने सोमवार को इस वार्ता की योजना की पुष्टि तो की है, लेकिन उन्होंने यह भी कहा है कि “इससे पहले बहुत सारा कूटनीतिक काम बाकी है।”

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि वे “शांति तो चाहते हैं, लेकिन अपने लक्ष्य नहीं छोड़ेंगे।” यह संकेत देता है कि रूस अपनी मांगों जैसे कि यूक्रेन के पूर्वी हिस्सों पर नियंत्रण और नाटो विस्तार के विरोध पर अडिग है।


डोनाल्ड ट्रंप की धमकी का क्या असर?

हाल ही में अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बयान में रूस को चेतावनी दी थी कि यदि वे 50 दिनों के भीतर युद्धविराम के लिए तैयार नहीं होते, तो उन्हें और भी सख्त प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा। ट्रंप के इस बयान को वैश्विक राजनीति में एक कड़े संदेश के रूप में देखा गया, लेकिन क्रेमलिन ने इसे सिरे से खारिज कर दिया

रूस ने साफ कहा है कि वे किसी की धमकियों से डरने वाले नहीं हैं, और शांति प्रक्रिया केवल उसी स्थिति में आगे बढ़ सकती है जब उन्हें अपने “वैध सुरक्षा हितों” की गारंटी मिले।


पश्चिमी देशों का रुख

शांति वार्ता की चर्चा के बीच अमेरिका, यूरोपीय यूनियन और नाटो जैसे पश्चिमी संगठनों ने रूस पर और अधिक दबाव बनाने की कोशिशें तेज़ कर दी हैं। उनके अनुसार, पुतिन केवल तभी बातचीत के लिए गंभीर होंगे जब उन पर आर्थिक और राजनीतिक रूप से दबाव डाला जाए।

लेकिन इसका उल्टा असर यह हो सकता है कि रूस और ज़्यादा आक्रामक रुख अपनाए, जैसा कि हमने कई बार पूर्व में देखा है।


यूक्रेन की रणनीति: जनसमर्थन और वैश्विक दबाव

यूक्रेन जानता है कि उसे युद्ध में लम्बे समय तक टिके रहना है, तो वैश्विक समर्थन ज़रूरी है। इसी कारण से राष्ट्रपति जेलेंस्की लगातार यूरोपीय और पश्चिमी नेताओं से बातचीत कर रहे हैं, और शांति वार्ता को प्राथमिकता दे रहे हैं। वह दुनिया को यह दिखाना चाहते हैं कि यूक्रेन शांति चाहता है, जबकि रूस टालमटोल कर रहा है।


क्या निकल सकती है कोई उम्मीद?

विशेषज्ञों का मानना है कि इस्तांबुल में प्रस्तावित यह बैठक अगर होती है, तो यह एक सकारात्मक संकेत होगा। भले ही यह बैठक किसी अंतिम समझौते तक न पहुंचे, लेकिन यह संवाद का दरवाज़ा खुला रखने का प्रयास मानी जा सकती है।

कई बार युद्ध की समाप्ति ऐसे ही छोटे-छोटे कदमों से शुरू होती है, जो भविष्य में एक बड़ा समाधान ला सकते हैं।

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